धर्म की पहचान के प्रति बढ्ते आग्रह के चलते अवसर आ गया है कि हिन्दू धर्म को जीवन पद्धति कहना बन्द किया जाये और वैश्वीकरण के इस काल में इसे सार्वभौमिक धर्म बनने की ओर विकसित किया जाये जो कि व्यक्ति को स्वतन्त्र होते रहने की प्रेरणा देते हुए अंततः प्रकृति से भी मुक्त हो जाने का क्रियात्मक विधान भी बताता है।